तेरे हसीन चेहरे से नज़र नहीं हट पा रहा हूँ मैं
तेरी आँखों मैं पूरी ज़िन्दगी नज़र आता हैं मुझे
हाथ तेरी जब धामें तो जादू सा लगता हैं मुझे
छोडोगी कभी नहीं वादा ये देदो मुझे
छिप जाओ कहीं भी तेरे दिल की धड़कन से पहचान लूँगा मैं
आँखें न हो तो भी तेरी रूह की खुशबू से पहचान लूँगा मैं
देखने की भी क्या हैं ज़रुरत ,जो भी दीखते हैं तुम ही नज़र आती हैं
ज़माने की भी क्या हैं ज़रुरत ,जब दिल मैं तुम बसे हो और हाथ मैं तेरे हाथ हो
(अलोक गुप्त )
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