Saturday, November 28, 2009

बातें दिल की 4

खो गया हूँ मैं तेरी यादों मैं
खो दिया खुद को तेरी आँखों मैं
खोया हैं मेरे दिल जान चैन और नींद
पर पा लिया सब कुछ तेरे प्यार मैं

मासूम सी तेरी ये  हँसी
सूरज की पहली किरण हैं जैसी
भर जाती हैं दिल में  मायूसी
जब तुम नहीं हो मेरे पास ही

दिल मैं जो उठी चाहत की लहरें
ठूण्डते हैं साहिल तेरे प्यार मैं
लेटा हूँ मैं खुले आसमान के नीचे
इंतज़ार तेरी आहट की हैं मुझे

हँसते हैं मुझपे चाँद और तारे
और पवन ,जो लहराए सुल्फें ये तेरे
इन सबों से सिफारिश हैं मेरे
जा और लेके आ उसको पास मेरे
(अलोक गुप्त )

Wednesday, November 18, 2009

बातें दिल की ...3

तेरे हसीन चेहरे से नज़र नहीं हट पा रहा हूँ मैं
तेरी आँखों मैं पूरी ज़िन्दगी नज़र आता हैं मुझे
हाथ तेरी जब धामें  तो जादू सा लगता हैं मुझे
छोडोगी कभी नहीं वादा ये देदो मुझे

छिप जाओ कहीं भी तेरे दिल की धड़कन से पहचान लूँगा मैं
आँखें  न हो तो भी तेरी रूह की खुशबू से पहचान लूँगा मैं
देखने की  भी क्या हैं ज़रुरत ,जो भी दीखते हैं तुम ही नज़र आती हैं
ज़माने की भी क्या हैं ज़रुरत ,जब दिल मैं तुम बसे हो और हाथ मैं तेरे हाथ हो

(अलोक गुप्त )